आख़िर सफ़र लिख रहा हूँ hindi poetry

घनघोर अधिंयारी को आखरी पहर लिख रहा हूं.
जो पूरे शहर को जगा दे वो खबर लिख रहा हूँ.

बहुत रोया हूं मै आज बीती बातें सोचकर,
इन बहते आसूंओ को तेरा जहर लिख रहा हूँ.


यूं तो मुद्दतो से सोया नही हूँ मै,
पर सपनो मे खोया एक नजर लिख रहा हूँ.


न जाने क्यू जन्नत सी लगने लगी कब्रिस्तान की आबोहवा,
शायद मै अपना आखरी सफर लिख रहा हूँ.

शायद मै अपना आखरी सफर लिख रहा हूँ..!!!

सब्र रख ये दोस्त

सब्र रख ऐ दोस्त वक्त आयेगा तो हम भी आसमाँ मे उड़ना सीख लेगे,
अभी गिर रहे है तो क्या हुआ गिरते-गिरते सम्हलना सीख लेगे,
ले आये जिन्दगी अगर चौराहे पर और खो जाये मंजिले तो गम क्या करे,
हम भी वक्त बे वक्त पर अपने रास्ते बदलना सीख लेगे ।
लोगो की भागदौड़ मे हमे सरकता देखकर वो मजाक उड़ा रहे है मेरा,
कोई बताओ उन्हे सरकते सरकते हम भी चलना सीख लेगे ।
अगर बदलकर मिजाज वो रइसो के महफिल मे जा पहुंचे,
हम भी मिटा कर नाज अपना गरीबो मे रहना
सीख लेगे ।

हर किसी को चाहनें वाले मिले

हर किसी को चाहने वाले मिले,

मगर हम को भाव खाने वाले मिले।

जरूरत के वक्त हम याद आयें ,

जरूरत के बाद भूल जाने वाले मिले।

जोकर का मुखौटा तो सच्चा था ,

यहां चेहरे के पीछे चेहरा छिपाने वाले मिले ।

भरोसा उम्मीद यकीन सब तोड़ते रहे ,

मुझे जो भी मिले दिल दुखाने वाले मिले ।


हर किसी को चाहने वाले मिले,

हर किसी को चाहने वाले मिले,

मगर हम को भाव खाने वाले मिले।

जरूरत के वक्त हम याद आयें,

जरूरत के बाद भूल जाने वाले मिले।

जोकर का मुखौटा तो सच्चा था,

यहां चेहरे के पीछे चेहरा छिपाने वाले मिले।

भरोसा उम्मीद यकीन सब तोड़ते रहे,

मुझे जो भी मिले दिल दुखाने वाले मिले….।

S उपाध्याय


सब्र रख ऐ दोस्त

सब्र रख ऐ दोस्त वक्त आयेगा तो हम भी आसमाँ मे उड़ना सीख लेगे,
अभी गिर रहे है तो क्या हुआ गिरते-गिरते सम्हलना सीख लेगे,
ले आये जिन्दगी अगर चौराहे पर और खो जाये मंजिले तो गम क्या करे,
हमभी वक्त बे वक्त पर अपने रास्ते बदलना सीख लेगे।
लोगो की भागदौड़ मे हमे सरकता देखकर वो मजाक उड़ा रहे है मेरा,
कोई बताओ उन्हे सरकते सरकते हम भी चलना सीख लेगे ।
अगर बदलकर मिजाज वो रइसो के महफिल मे जा पहुंचे,
हम भी मिटा कर नाज अपना गरीबो मे रहना
सीख लेगे …।।।

S उपाध्याय

हारा हूँ

कभी नफरत से कभी दोस्ती से कभी प्यार से हारा हूँ,
मगर जब भी हारा हूँ बड़े हिसाब से हारा हूं,
मै काटो से नही हारा मुझे कलियां जख्म दे गयी,
जो फूल लगाई दिल मे उस गुलाब हारा हूँ.
फर्क कुछ नही पड़ा उसे मेरे न होने का,
मै तो उसके दूर जाने वाले ख्वाब से हारा हूँ.
कमीनी ये दूनिया के मुखौटे बहुत निकले,
वही चेहरे पर न दिखने वाले नकाब से हारा हूँ.
आज, कल, परसो सुन कर ही बीत गये दिन,
उसके लौट कर आने के इन्तजार से हारा हूँ.
अब कुछ नही बचा “सुशील, याद के सिवा,
जीत जीत कर हारा हार हार कर हारा हूँ…!!

हारा हूँ