यूनान की सभ्यता

यूनान की सभ्यता
यूनान के प्रारंभिक निवासी आर्यों की भाति ही प्रारंभिक यूनान के निवासी भी कबीलों में रहते थे। प्रत्येक कबीले में अनेक परिवार होते थे। उनका एक नेता होता था। कई कबीलों का स्वामी राजा होता
था। प्रारभिक यूनानियों के मुख्य व्यवसाय, कृषि, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन, तलवार और आभूषण बनाने थे। व्यापार अधिकतर वस्तुओं का विनिमय करके होता था। युद्ध, जोखिम के कार्य और विजय में ही यूनानी लोग जीवन का सर्वोच्च आनन्द्र अनुभव करते थे ।
प्रारंभिक यूनानियों के धार्मिक विश्वास बहुत सरल थे। उनके अनेक देवता थे। यूनानी लोगों ने अपने देवताओं की मनुष्यों के रूप में कलाना की थी. यद्यपि ये देवता मनुष्य की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली और अमर समझे जाते थे। जियस आकाश का देवता था अतः उसी के कारण बिजली चमकती थी।
समुद्र के देवता को ये पोसीदन कहते थे।
वह ऐसे तूफानों को उठाता था, जिनके कारण जहाज डूब जाते थे। अपोलो सूर्य देवता था। यह भविष्यवाणी कर सकता था। एथीना विजय की देवी थी। वह भारत की देवी सरस्वती के समान ही कलाओं का संरक्षण करती थी। शराब के देवता को ये डायोनीसस कहते थे। इनके अतिरिक्त बहुत से अन्य देवता भी थे।
यूनानिनयों का विश्वास था कि देवता लोगओलिम्पस पर्वत पर रहते है। यह पर्वत यूनान के उत्तरी भाग में स्थित है। वे स्वर्ग या नरक में विश्वास रखने के कारण इन देवताओं को नहीं पूजते थे, अपितु अच्छी फसल का लाभ उठाने और अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने देवताओं को प्रसन्न करना चाहते थे। उनके देवताओं का मनुष्यों के पाप-पुण्य से कोई इसी सरोकार न था। यूनानियों के पुरोहित नहीं होते थे। परिवार का स्वामी ही यज्ञ करता था या राजा सारे समुदाय की ओर से यज्ञ करता था।
लगभग 800 ई. पू. तक यूनानी लोग लिखना नहीं जानते थे। किन्तु लोक-गीतों।और वीर-काव्यों में वे अपने वीरों और विजयों की कथाएँ गाते थे। इस प्रकार उनके व पूर्वजों की कहानी सुरक्षित रही। जब लिपि का विकास हो गया तो कवियों ने इन कहानियों
को लेखबद्ध कर दिया। होमर नाम के कवि ने दो प्रसिद्ध कविताएँ लिखीं। इनसे हमें प्रारंभिक यूनानियों के जीवन और समाज के विषय में बहुत जानकारी मिलती है। एशिया-माइनर के पश्चिमी तट पर ट्रॉय नाम का नगर है। इलियड में इस नगर के घेरे और
नाश की कहानी का वर्णन है। ओडिसी में ओडिसयस नामक यूनानी वीर के जोखिमपूर्ण जा कार्यों और उसके ट्रॉय से घर लौटने की कहानी लिखी गई है।

नगर-राज्यों का उदय 800 ई. पू के लगभग कुछ यूनानी ग्रामों के समूहों ने मिलकर नगर-राज्यों का रूप ले लिया। एक नगर-राज्य में सबसे ऊँचे स्थान पर एक्रोपोलिस या गढ़ बनाया जाता था।
जिससे कि नगर सुरक्षित रह सके। इस गद के चारों ओर नगर बसा होता था। समस्त यूनान और समीप के स्पार्टा, एथेस. मकदूनिया, कोरिन्थ और थीम्स आदि द्वीपों में ऐसे अनेक नगर स्थापित हो गए। इन नगर-राज्यों में पहले राजा राज करते थे। कुछ समय पश्चात् धनी जमींदारों ने सारी राजनैतिक शक्ति अपने हाथ में ले ली और राजतंत्र को समाप्त कर दिया।
नगरों की जनसंख्या बढी जब व्यापार और उद्योगों की उन्नति हुई, तो इन नगरों में धनी मध्यम वर्ग का विकास हुआ। जमीदारों की शक्ति कम करने के लिए यह मध्यम वर्ग निर्धन किसानों से मिल गया। इस संघर्ष के फलस्वरूप इन राज्यों में तानाशाहों का उदय हुआ जिन्हें यूनानी लोग टायरेट’ कहते थे। समय के साथ तानाशाही भी समाप्त कर दी गई और अधिकतर राज्यों में लोकतंत्र या कुछेक धनियों द्वारा संचालित अल्पतंत्र (Oligarchy) की स्थापना हुई।
इन नगर-राज्यों में कुछ बातें एक सी थीं। परंतु उनमें से प्रत्येक की कुछ निजी विशेषताएँ भी थीं। उनमें आपस में अनेक संघर्ष हुए और यात्रा और संचार की कठिनाइयों के कारण वे संगठित होकर एक महान राज्य का रूप न ले सके। यूनान की मुख्य भूमि
पर दो प्रमुख नगर-राज्य, स्पार्टा और एथेंस थे।

स्पार्टा राज्य के खंडहर

स्पार्टा का राज्य
स्पार्दा का राज्य यूनान के प्रायः सभी अन्य राज्यों से भिन्न था। इसका एक कारण यह था कि इसकी भौगोलिक स्थिति ही ऐसी थी। पर्वत श्रेणियों इसे अन्य राज्यों से पूर्णतया अलग करती थी। स्पारटा के निवासियों की सबसे अधिक रुचि सैन्यवाद और युद्ध में थी।
इसी कारण वे सात वर्ष की अवस्था से ही अपने बालको को कठिनाइयों और कष्ट सहन करने का अभ्यास कराते और उन्हें कुशल और भयंकर योद्धा बनाने के लिए प्रशिक्षण देते थे। यही उनकी शिक्षा थी। शस्त्र चला सकने वाले सभी नागरिक योद्धा होकर अपना सारा जीवन बैरको मे बिताते थे। स्पार्टा के बहुत से निवासी दास थे। अधिकतर कामी वे ही करते थे जिससे स्पार्टी के नागरिक अन्य कार्यों की चिन्ता से मुक्त रहते और युद्ध कला और शासन में समय लगाते थे। स्पार्टी के राजाओ का मुख्य कार्य सेना का नेतृत्व
करना ही था। कुलीन व्यक्तियों की एक परिषद् और एक सभा शासन-कार्य का निरीक्षण करती थी। वहीं राज कर्मचारियों का चुनाव करती और शिक्षा की व्यवस्था भी करती थी। लेकिन स्पार्टा का शासन सेना द्वारा सेना के हितों को ध्यान में रखकर ही चलाया
जाता था। सभा के सदस्य वे ही नागरिक हो सकते थे, जिनकी आय इतनी होती कि वे सेना में एक नियत स्तर के पद पर नियुक्त होने के अधिकारी होते।
स्पार्टा के निवासियों की दास-प्रथा ने स्वयं स्पार्टी के नागरिकों को ही अततः दास बना दिया। दास सदा विद्रोह करते रहते थे और उनका दमन करने के लिए राज्य को सदा ही शक्तिशाली सेना रखनी पड़ती थी। स्पार्टा का कोई भी निवासी अपनी बैरक से बाहर निहत्था नहीं निकलता था। स्पार्टा का प्रत्येक निवासी बचपन से साठ वर्ष की उम्र तक कठोर अनुशासन में अपनी बैरक में रहता था, अत उसे शिक्षा प्राप्त करने और गृहत्य जीवन बिताने का अवसर ही न मिलता था। नए विचारों के आने से उनकी जीवन पद्धति नष्ट न हो जाए, इस भय से वे व्यापार और विदेश-यात्रा की भी अनुमति नही देते थे। पार्टी के निवासी कुशल योद्धा थे। यूनान की संस्कृति के निर्माण में किसी अन्य रूप में उनका योगदान नहीं रहा। उनके काव्य और गीतों में केवल सैनिक सफलताओं का यश गाया गया है।

युनानी खंडहर

एथेंस का राज्य
एथेस के नगर राज्य का विकास स्पार्टा के विकास से पूर्णतया भिन्न रूप में हुआ। एथेरा, का राज्य जिन प्रदेशों पर था, उन पर इस राज्य ने धीरे-धीरे शातिपूर्ण तरीके से अधिकार किया इसलिए वहीं सैन्यवाद का विकास नहीं हुआ। एथेंस के पास बड़े अच्छे बंदरगाह
और बहुमूल्य खनिज पदार्थ थे। एथेस के निवासियों ने व्यापार में बहुत उन्नति की. जिसके कारण यहाँ नागरिक सभ्यता का विकास हुआ।
सातवीं शती ई पू में एथेस में राजतंत्र के स्थान पर धनिकों के अल्पतंत्र (Oligarchy) की स्थापना हुई। इस काल में अधिकतर भूमि किसानों के हाथ से निकलकर कुलीन लोगों के हाथ में चली गई। बहुत से किसानों ने पहले अपनी भूमि धरोहर रखी, फिर
अपने परिवार के सदस्यों को भी ऋण चुकाने के लिए घरोहर रख दिया। अत में उन्न अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ा और वे सभी दास बन गए। एथेंस में कुलीन वर्ग और दास वर्ग के अतिरिक्त कुछ अन्य स्वतन्त्र नागरिक भी थे। ये डेमोस कहलाते थे। इन वर्ग में स्वतंत्र किसान मजदूर, कारीगर और व्यापारी थे। इनमें से कुछ धनी थे। सभी लोग कुलीन वर्ग के अल्पतत्रीय शासन से असतुष्ट थे। उनके संघर्ष के फलस्वरूप 594 ई.पू. में सोलन को नया मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया। उसे सुधार करने का अधिकार
दिया गया। सोलन ने गिरवी प्रथा को समाप्त कर दिया और एथेस के उन सभी नागरिक को जो श्रण के कारण दास हो गए थे, मुक्त कर दिया। उसने यह नियम भी बना दिया कि भविष्य में एथेस का कोई निवासी ऋण न चुका सकने के कारण दास नहीं बनाया जायेगा। किंतु उसने उन दासों को मुक्त कर दिया जो विदेशों से खरीद कर लाए गए थे। सोलन ने फिर से सभा की स्थापना की और एथेंस के सभी स्वतंत्र नागरिक इसके सदस्य माने गए। उसके सुधारों से निर्धन और मध्यम दोनों वर्गों को ही लाभ हुआ। न्याय व्यवस्था का भी पुन संगठन किया गया। न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का चुनाव भी
नागरिकों के हाथ में आ गया।
469 से 429 ई. पू में पेरिक्लीज के नेतृत्व में एथेस का लोकतंत्र उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गया। यह सभा दस जनरलों को चुनती थी और वे आधुनिक मंत्रिमंडल के समान शासन चलाते थे। लगभग 15 वर्ष तक पेरिक्लीज इस मत्रिमंडल का अध्यक्षा रहा। ये जनरल सभा के प्रति उत्तरदायी थे। इसलिए ये तानाशाह नहीं हो सकते थे। से लोकप्रिय न्यायालय थे, जिनमें जूरी द्वारा मुकदमों का फैसला होता था। जूरी
के सदस्य सभी वर्गों के नागरिकों में से लाटरी द्वारा चुने जाते थे।
एथेंस के लोकतंत्र में केवल नागरिकों को राजनीतिक अधिकार और स्वतत्रता प्राप्त थी। पेरिक्लीज के समय में कुल जनसंख्या का केवल घोडा भाग ही नागरिक
वर्ग के अन्तर्गत आता था।

युनानी सभ्यता को दर्शाता एक पेंटिंग

युद्ध और यूनानी लोकतंत्र की समाप्ति पांचवीं शती ई.पू. में एथेंस के लोकतंत्र को दो युद्धों में फसना पड़ा, जिसके कारण उसकी महानता समाप्त हो गई। एथेस को पहला युद्ध शक्तिशाली ईरानी साम्राज्य और उसके सम्राटदारा के विरुद्ध लड़ना पड़ा। दारा ने पहले ही सिंधु नदी से लेकर एशिया माइनर तक के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था और अब उसने इजियन सागर को पार करके विजय के लिए यूनान पर आक्रमण किया।
उसकी बड़ी सेना एक बड़े जहाजी बेड़े की सहायता से एथेंस के निकट मराथन नामक स्थान पर जा उतरी। यूनान के इतिहास में पहली बार सारे राज्यों ने
मिलकर एक शत्रु के विरुद्ध युद्ध किया। यूनानी सेनाए संख्या में बहुत कम फिर भी 490 ई.पू में मराथन के युद्ध में वे इतनी वीरता से लड़ी कि उन्होंने ईरानी सेनाओं को खदेड दिया।
दस वर्ष बाद ईरानियों की सेना ने यूनान पर फिर आक्रमण किया, परतु वह अपने उद्देश्य में सफल न हुई। इस बार धर्मोपिले के दर्रे पर स्पार्टा के कुछ थोडे-से योद्धाओं से उनकी मुठभेड हुई। इन वीरों ने अपने जीते जी अंत तक इस तग दरें की रक्षा की।
ईरानियों ने एथेंस नगर में आग लगा दी, किन्तु अंत में उन्हें वहाँ से पीछे हटना पड़ा इसी युद्ध के कारण यूनान के राज्यों में एथेंस प्रमुख बन गया।
एथेंस और स्पार्टा के बीच 431 ई.पू से 404 ई. पूतक पेलोपोनीशियन युद्ध हुआ।
इ. युद्ध के कारण एथेस का पतन हो गया। ईरानी युद्धों के समय एथेस ने अन्य यूनानी राज्यों से मिलकर एक संघ बनाया था। उस युद्ध के बाद उसने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस संघ की सहायता से अपनी नौ-सेना की शक्ति बहुत बढ़ा ली। एथेंस की बढती हुई शक्ति को देखकर स्पार्टी के निवासी भयभीत हो गए। एथेस और स्पार्टी के बीच सदा ही गर्मा-गर्मी रहती थी। इस युद्ध में यूनान के कुछ राज्यों ने एथेस की सहायता
की और कुछ ने स्पार्टा की। यह युद्ध बहुत दिनों तक चलता रहा। अंत में एथेस की पराजय हुई और इसी के साथ इस देश में लोकतंत्र की समाप्ति हो गई। एथेस को स्पार्टी का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा। पेलोपोनीशिया के युद्ध से यूनान की महान संस्कृति का पतन प्रारंभ हो गया। इस युद्ध के पश्चात कई वर्षों तक यूनान घरेलू युद्धों में फसे रहे और इन्हीं युद्धों में इनकी सारी शक्ति समाप्त हो गई।

सिंकंदर का पेंटिंग

सिकंदर का साम्राज्य
एथेस की हार के बाद मकदूनिया के राजा फिलिप ने यूनान के अधिकतर राज्यों पर अधिकार कर लिया। उसके पुत्र सिकंदर को अपने पिता की बड़ी सेना पैतृक संपत्ति के रूप में मिली और 20 वर्ष की अवस्था में सिकदर ससार विजय करने के लिए चल
दिया। 336ई पू से 320 ई.पू के 13 वर्षों के समय में उसने यूनानी राज्यों को अपना नेतृत्व स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया। इसी के साथ उसने उस समय के सबसे महान और शक्तिशाली ईरानी साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह भारत की सीमा पर आ गया। यहाँ उसने 326 ई.पू में झेलम नदी के तट पर राजा पोरस को हराया और सिधु नदी के रास्ते उसके मुहाने पर पहुँचा, जहाँ से वह मैसोपोटामिया
लौट गया। वहीं 323 ई.पू में 32 वर्ष की आयु में बुखार से उसकी मृत्यु हो गई।
सिकदर की विजय के कारण विश्व में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. यूरोप और एशिया के बीच व्यापार बढ़ा और अनेक नए नगर बसाए गए।
सिकदर की मृत्यु के बाद उसके सेनापतियों ने उसके राज्य को आपस में बाँट लिया।
उसके एक सेनापति सेल्यूकस को ईरान, मैसोपोटामिया और सीरिया प्राप्त हुए। बाद में
सेल्यूकस ने भारत पर हमला किया। परतु चद्रगुप्त मौर्य ने उसे हरा दिया। इस युद्ध फलस्वरूप सेल्यूकस के साम्राज्य और मौर्य साम्राज्य के बीच मैत्री सबंध स्थापित हो गए। सिकंदर का एक सेनापति टॉल्मी (Ptolemy) था। वह मिस, फिलिस्तीन और
फिनीशिया का शासक बना। मिस्र की विजय के उपलक्ष्य में सिकंदर ने सिकंदरिया का नगर बसाया। यूनान के पतन के बाद यह नगर बहुत दिनों तक यूनानी संस्कृति और शिक्षा का केन्द्र रहा। टॉल्मी ने सिकंदरिया में कला, साहित्य और शिक्षा की देवी का
एक मंदिर बनवाया। यह म्यूजियम नाम से जाना जाता है। इसमें एक वेधशाला और एक पुस्तकालय था। टॉल्मी का आदेश था कि जो भी पुस्तक मिस्र में आए उसकी एक प्रति इस पुस्तकालय को अवश्य दी जाए।
सिकदर और टॉल्मी की मृत्यु के बाद भी उनके अच्छे काम चलते रहे। सिकंदरिया के म्यूजियम में कार्यरत विद्वानों ने उसे आगे बढ़ाया। रेखागणित का जनक यूक्लिड इसी स्थान पर रहता था। भूगोल के विद्वान इरैटोस्थनीज ने पृथ्वी की परिधि का हिसाब यहीं
लगाया था और आर्किमिडीज ने अपने उम सिद्धांतों का प्रतिदान भी इसी म्यूजियम में किया जिन्हें बालक आज भी स्कूल में पढ़ते हैं। इनकी और अन्य बहुत से उन विद्वानों की शिक्षाएँ जिन्होंने इस म्यूजियम में कार्य किया, आज भी विश्व की बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। दूसरी शती ई. पू. में रोम के साम्राज्य का पूर्व की ओर विस्तार होने लगा। और 30 ई. पू. के बीच रोम के आक्रमणों के फलस्वरूप यूनानियों का सारा प्रदेश और उनका साम्राज्य रोम के साम्राज्य के भाग बन गए।