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मिस्र की सभ्यता

मिस्र की सभ्यता
मिस्र को नील नदी का वरदान कहा जाता
है। इस नदी के दोनों किनारों की सकरी पट्टी हरी और उपजाक है. यह वह क्षेत्र है जहाँ पर मिस्र की सभ्यता फली-फूली।
इतिहासकार मिस्र के इतिहास को तीन कालो में बाँटते है-प्राचीन राज्य, मध्यकालीन राज्य और नवीन राज्य । प्राचीन राज्य को पिरामिडों का युग भी कहते है।
इस युग में काहिरा के निकट स्थित मेम्फिस नगर इस राज्य की राजधानी था ।
इस काल (3000-2000 ई.पू) और मध्य कालीन राज्य (2000-1750 ई.पू) के दौरान मिस्र की सभ्यता कला, धर्म और विज्ञान की प्रगति के कारण विकसित
हुई। मगर अठारहवीं शताब्दी ई. पू. में हाइकसोस आक्रमणकारियों ने मिस्र पर हमला किया। वे पूर्व की ओर से आए थे। वे खानाबदोश थे और उनकी सभ्यता मिस्र के निवासियों की सभ्यता की तुलना में
बहुत कम विकसित थी। उनका राज्य थोड़े ही दिन चला और जल्दी ही मिस्र के राजाओं ने अपने देश को फिर जीत लिया। इस प्रकार नवीन राज्य की स्थापना हुई।

मिस्र के सामाजिक वर्ग राजा से दास तक
मिस्र का राजा फराओ (Pharach) कहलाता था। उसके पास पूर्ण शक्ति होती थी। फराओ सारी धरती का मालिक था और वह जो कहता था वही कानून हो जाता था। उसे देवता समझा जाता था और उसकी मूर्तियों मदिरों में स्थापित की जाती थीं। उसके कार्यों और विजयो का विवरण मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण कराया जाता था। समाज में फराओ के पश्चात् पुरोहितो, राजकर्मचारियों, कलाकारों और दस्तकारों का स्थान था जो शहरों से बाहर रहते थे। उनके बाद किसानों का स्थान था जो शहरो से बाहर रहते थे. उनके बाद दास आते थे जो आमतौर से युद्धबंदी होते थे और राजा उनका मालिक होता था।

प्राचीन मिस व्यवसाय, वास्तुकला और शिल्प
यहाँ के लोगो का सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय था कृषि नदियों प्रति वर्ष भूमि को उपजाऊ बनाती और यहां के निवासी नहरे बनाते थे, जिससे वर्ष भर फसल उगाने के लिए पानी मिल सके। ऐसा लगता है कि 3000 ई.पू में भी ये बैलों की सहायता से हल चलाते थे।
अन्य प्रारंभिक सभ्यताओ के लोगों की भाति मिस्र के निवासी भी पशु-पालन करते थे। साधारणतया मनुष्य बकरी, कुत्ते, गधे, सुअर और बत्तख पालते थे। कहीं कहीं लगता है कि उनके पास ऊंट भी थे। मिस में घोड़े को पहली बार हाइकसोस लोग ले आए। ये घोडे
युद्ध के समय उनके रथों को खीचते थे।

यहाँ के वास्तु कला और शिल्पकला श्रेष्ठ थी। प्रारम्भिक काल में मिस्र की इमारतों में पिरामिड सर्वश्रेठ थे । उस काल की महान उपलब्यिों में से 30 बडे और बहुत छोटे पिरामिड आज तक विद्यमान है। उन सब में से भव्य काहिरा के पास गीजा का महान पिरामिड है। इसका निर्माण 2650 ई.पू.के आस-पास प्राचीन राज्य के फराओ सियोफ (खुफ) ने किया था। प्राचीन यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार करीब तीन लाख लोगों ने 20 वर्षों की मेहनत के बाद इसे पूरा किया। यह बड़ी इमारत पथ के बहुत बडे भारी टुकड़ों को जोड़कर बनाई गई है। कहते हैं कि इसको पूरा करने के लिा एक लाख मजदूरों ने 20 वर्ष तक कार्य किया था। पत्थर के इन-भारी टुकड़ों को गढकर चढाई के ऊपर खिसका कर चढ़ाया जाता था। और फिर बड़ी सावधानी तथा निपुणता से इनकी जड़ाई की जाती थी। इसके लिए इजीनियरी संबंधी आश्चर्यजनक कौशल की आवश्यकता पड़ती थी। निसंदेह पिरामिडों की प्राचीन ससार की सात आश्चर्यजनक चीजों में रखना सर्वथा उचित है।
पिरामिड मिस्र के राजाओं के मकबरे थे इसलिए उनमें उनकी ममियों को और इस्तेमाल में आने वाली सभी प्रकार की बहूमूल्य वस्तुओं को रखा जाता था। इन पिरामिडों को बने शताब्दियों हो गई। इस दीर्घकाल में उनको लूटा गया किन्तु वर्तमान शताब्दी के तीसरे दशक में तूतन खामन का मकबरा पूरी तरह सुरक्षित दशा में मिला। इस मकबरे की बहुमूल्य वस्तुएँ आज भी काहिरा के संग्रहालय में देखी जा सकती है। इस मकबरे की दीवारों पर कई बड़े और सुंदर चित्र है। उनसे तत्कालीन मिस-निवासियों के जीवन के विषय में हमें बहुत जानकारी प्राप्त होती है, क्योंकि चित्रों में अनेक युद्धों, शिकार और बलिदान संबंधी जुलूसों के दृश्य दिखलाए गए है, दैनिक जीवन के अन्य बहुत से दृश्य भी इसमें चित्रित है।
मिस्र वास्तुकला का एक अन्य अजीब नमूना स्फिक्स है। स्फिक्स पौराणिक कथाओं में वर्णित एक जानवर है जिसका शरीर सिंह का और सिर मनुष्य का है। प्रत्येक स्फिक्स की मूर्ति बढे ठोस पत्थर की एक चट्टान को तराश कर बनाई गई थी। मिस्री मंदिर भी उल्लेखनीय इमारतें है। कार्नाक के मंदिर को बड़े पैमाने पर मूर्तियों और शिल्पकलाओं से सुसज्जित किया गया था। इनमें 130 शानदार स्तम्भो वाला एक
हॉल है और सिफक्सों की एक गली मंदिर से नदी तक बनी हुई है। दूसरा प्रसिद्ध मंदिर अबू सिम्बल का था। इसे बलुआ पत्थर (Sandstone) की चट्टान को काट कर बनाया गया है। मंदिर के भीतरी भाग में हॉलों की एक कतार थी, जो ठोस चट्टान में लगभग 60 मीटर खोदकर बनाई गई थी। यह मंदिर सूर्य देवता के निमित्त बनाया गया था। उगते हुए सूर्य की किरणें इस मंदिर को प्रकाशित करती थीं। यह इस मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता है। इसीलिए यह उगते हुए सूर्य का मंदिर कहा गया है। कार्नाक और अबू सिम्बल दोनों नील नदी के किनारे स्थित थे। आज से लगभग
35 वर्ष पूर्व आस्वान में एक ऊँचा बाँध बनाने का कार्य शुरू हुआ। यह बात स्पष्ट हो गई कि बाघ के तैयार होने पर अबू सिम्बल पानी में डूब जाएगा। इसलिए यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय प्रयास से इन स्मारकों की रक्षा करने की एक योजना आरंभ की। स्मारकों की रक्षा करने के उद्देश्य से अनेक देशों के पुरातत्वविदों के दल इन स्मारकों को मूल स्थान से हटाने के काम में लग गए। इसमें भारत के पुरातत्वविदों के एक दल ने भी
भाग लिया था। भारत में नार्गाजुन सागर बाँध बनने पर नागार्जुन कोण्डा के स्मारक उसी तरह बच गए।

लिपि ( Script)
मिस्र निवासियों ने शायद लिखने की कला 3000 ई. पू. से पहले ही सुमेर निवासियों से सीखी थी, किन्तु उनकी लिपि कीलाकार लिपि की नकल नहीं है। मिस की लिपि हेरोग्लिफिक कहलाती है। इसका अर्थ है पवित्र लिपि’ इसमें 24 चिह्न थे जिनमें से प्रत्येक एक व्यंजन अक्षर का प्रतीक था। इस लिपि में स्वर वर्ण नहीं लिखे जाते थे। बाद में मिस्र निवासियों ने विचारों के लिए संकेतों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया।
इस प्रकार चिहनों की संख्या बढ़कर 500 हो गई। थोड़े ही दिनों के बाद लोगों को लिपि का महत्व मालूम हो गया और सुमेर की तरह ही लेखन का विकास एक विशेष कला के रूप में हुआ। लिपिकों का समाज में एक प्रमुख स्थान था। वे पेपिरस नाम के पेड़ के पत्तों पर सरकंडे की कलम से लिखते थे। इसी से अंग्रेजी भाषा का पेपर शब्द बना जिसका अर्थ कागज है।
कीलाकार लिपि के पढ़े जाने की कहानी जितनी दिलचस्प है, हेरोग्लिफिक लिपि के पढ़े जाने की कहानी भी उससे कम दिलचस्प नहीं है। फ्रांस के प्रसिद्ध विजेता नेपोलियन ने 1798 में मिस्र पर हमला किया। उसके साथ कई विद्वान थे। नील नदी
के मुहाने के पास एक पत्थर खोज निकाला जो रोसेट्टा पत्थर के नाम से प्रसिद्ध है। इस पत्थर पर एक अभिलेख तीन लिपियों-हेरोग्लिफिक, प्राचीन मिस्र-निवासियों की एक अन्य लोकप्रिय लिपि डिमोटिक और यूनानी-लिपि में उत्कीर्ण था। धैर्य के साथ
दीर्घकाल तक परिश्रम करने के बाद शैम्पोल्यी (1790-1832) नामक एक फ्रासीसी विद्वान मिस की लिपि के सारे अक्षरों को पढ़ने में समर्थ हो गए। जिस प्रकार बेहिस्तून अभिलेख की सुमेर लिपि के पढ़े जाने से सुमेर-सभ्यता के द्वार खुले उसी प्रकार इस खोज से
मिस की सभ्यता को समझने के लिए नए द्वार खुले।
प्राचीन मिस्र में विज्ञान और गणित मिस्र वालो ने ज्ञान के अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की। उन्होंने अकों की एक दशमलव प्रणाली का विकास किया। अभीष्ट संख्या लिखने के लिए 1 से 9 तक के अकं के एक
ही चिहन को बार-बार दोहराया जाता था। 10 और उसकी गुणन संख्या के लिए भिन्न भिन्न चिहन थे। उदाहरण के लिए 110,100 आदि के लिए अलग-अलग सकेत थे। 153 की संख्या लिखने के लिए 100 का चिहन एक बार 10 का चिहन 5 बार 1 का
चिहन 3 बार लिखा जाता था। इस प्रणाली में जोड़ और घटाने की क्रियाएँ सरल थी।
मिस्र के निवासी त्रिभुज और आयत का क्षेत्रफल निकाल सकते थे।
मिस्र वालों की सबसे बड़ी उपलब्धि सौर पंचाग थी। लगभग सभी प्राचीन जनगणों ने सुमेर वालों की तरह अपने पंचाग चद्र मासों के आधार पर बनाए थे। किन्तु यह उस कृषक जनगण के लिए सहायक नहीं है जिसे अपने कार्य के लिए पहले से ऋतुओं, वर्षा और बाद आने के समय की जानकारी आवश्यक होती है। अनेक वर्षों तक सावधानी पूर्वक देखने के बाद मिस्र वालों को मालूम हुआ कि एक बाढ़ और दूसरी बाढ के बीच औसतन 365 दिन होते है। उन्होंने यह भी पाया कि सिरियस नामक चमकीला तारा सबसे बाद में तब निकलता था, जब बाढ़ काहिरा पहुँच जाती थी, और ऐसा हर 365 दिन पर होता था।
इन दो स्वतंत्र प्रेक्षणों से मिस्र वाले इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वर्ष में 365 दिन होते है। इसके बाद वर्ष को 12 महीनों में और प्रत्येक महीनों को 30 दिनों में बाँटा गया। बचे हुए 5 दिनों को धार्मिक उत्सवों के लिए अलग रखा गया। मगर सौर वर्ष में दरअसल लगभग 365 1/4 दिन होते हैं काफी समय बीतने पर 365 दिन के वर्ष पर आधारित पचाग गलत साबित हुआ। शायद मिस्र निवासियों ने इसको महसूस कर लिया था परंतु तब तक उस देश की दीर्घकालीन परंपरा के कारण वह पचाग इतनी दृढता से व्यवहार में जम गया था कि उन्होंने उसे नहीं बदला। फिर भी मिस्र का सौर पचाग एक महान उपलब्धि था।
अपने मृत लोगों के शवों को औषधियो का लेप देकर सुरक्षित रखने की मिस निवासियों की प्रथा ने विज्ञान के विकास को प्रोत्साहित किया। इससे मानव शरीर के
दावे से सम्बंधित ज्ञान और शल्यक्रिया के कौशल में वृद्धि हुई।
लगभग 1000 ई.पू. तक मिस्र की उन्नति का काल समाप्त हो गया। फराओ सम्राटों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अफ्रीका के रेगिस्तान से आकर मिस्र पर आक्रमण करने वाली खानाबदोश जातियों और भूमध्य सागर में स्थित नई शक्तियों के विरुद्ध
युद्ध करने पड़े।

धर्म
मिस के निवासियों का विश्वास था कि प्रकृति की प्रत्येक लीला के पीछे कोई बड़ी शक्ति विद्यमान होती है मगर सूर्य उनका सबसे महत्त्वपूर्ण देवता था। वे इसे सब चीजों का स्त्रष्टा मानते थे और उसकी पूजा अनेक नामों से करते थे। मिस वालों के अन्य प्रसिद्ध देवता थे-परलोक का राजा, बाढ़ का देवता और चंद्र देवता। उनके कुछ स्थानीय देवता भी थे। कभी-कभी बाज, घडियाल, गीदड़ और गाय को इन देवताओं के प्रतीक के रूप में लिया जाता था। संभवत चिर अतीत में ये पशु-पक्षी विभिन्न कबीलों के टोटम रहे होगे। लगता है कि मिस्र में पुरोहितों का कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं था।
मिस्र वालों का मृत्यु के बाद जीवन में दृढ विश्वास था। उनका ख्याल था कि जीवित अवस्था में मनुष्य की एक देह और एक आत्मा होती है। लोगों का विश्वास था कि मरने के बाद शरीर नष्ट हो जाता है और आत्मा जीवित रहती है, किन्तु मिस्र वालों
की धारणा थी कि मरने के बाद भी शरीर और आत्मा दोनो जीवित रहते है। केवल मृत व्यक्तियों का जीवन जीवित मनुष्यों के जीवन से कुछ भिन्न होता है। इसलिए वे मृत व्यक्ति के शव की रक्षा बड़ी सावधानी से करते थे। शव को मसालों से पोतकर बढिया कपड़ों में लपेटा जाता था। इस प्रकार से सुरक्षित किए गए शवों को ममी कहा जाता है। ममी को एक लकड़ी के संदूक में रखा जाता था उसे चित्रों से सजाया जाता
था और पत्थरों के बाक्स में बन्द करके एक मकबरे में दफना दिया जाता था। मकबरे के अंदर वे सभी वस्तुए रखी जाती थी जो मृत व्यक्ति को पसंद थीं और जिनका वह जीवित अवस्था में प्रयोग करता था। जब राजाओ और रानियों को दफनाया जाता लो
शव रखने के लिए काफी मूल्यवान बाक्स और मकबरे बनाए जाते थे, मगर जब साधारण मनुष्यों को दफनाया जाता था तब वे दोनों वस्तुएँ साधारण होती थी। इन मकबरों में कपडे, भोजन, पेय पदार्थ बहुमूल्य फर्नीचर और आभूषण रखे जाते थे। पिरामिड महान
राजाओ के मकबरे थे।


यूनान की सभ्यता

यूनान की सभ्यता
यूनान के प्रारंभिक निवासी आर्यों की भाति ही प्रारंभिक यूनान के निवासी भी कबीलों में रहते थे। प्रत्येक कबीले में अनेक परिवार होते थे। उनका एक नेता होता था। कई कबीलों का स्वामी राजा होता
था। प्रारभिक यूनानियों के मुख्य व्यवसाय, कृषि, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन, तलवार और आभूषण बनाने थे। व्यापार अधिकतर वस्तुओं का विनिमय करके होता था। युद्ध, जोखिम के कार्य और विजय में ही यूनानी लोग जीवन का सर्वोच्च आनन्द्र अनुभव करते थे ।
प्रारंभिक यूनानियों के धार्मिक विश्वास बहुत सरल थे। उनके अनेक देवता थे। यूनानी लोगों ने अपने देवताओं की मनुष्यों के रूप में कलाना की थी. यद्यपि ये देवता मनुष्य की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली और अमर समझे जाते थे। जियस आकाश का देवता था अतः उसी के कारण बिजली चमकती थी।
समुद्र के देवता को ये पोसीदन कहते थे।
वह ऐसे तूफानों को उठाता था, जिनके कारण जहाज डूब जाते थे। अपोलो सूर्य देवता था। यह भविष्यवाणी कर सकता था। एथीना विजय की देवी थी। वह भारत की देवी सरस्वती के समान ही कलाओं का संरक्षण करती थी। शराब के देवता को ये डायोनीसस कहते थे। इनके अतिरिक्त बहुत से अन्य देवता भी थे।
यूनानिनयों का विश्वास था कि देवता लोगओलिम्पस पर्वत पर रहते है। यह पर्वत यूनान के उत्तरी भाग में स्थित है। वे स्वर्ग या नरक में विश्वास रखने के कारण इन देवताओं को नहीं पूजते थे, अपितु अच्छी फसल का लाभ उठाने और अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने देवताओं को प्रसन्न करना चाहते थे। उनके देवताओं का मनुष्यों के पाप-पुण्य से कोई इसी सरोकार न था। यूनानियों के पुरोहित नहीं होते थे। परिवार का स्वामी ही यज्ञ करता था या राजा सारे समुदाय की ओर से यज्ञ करता था।
लगभग 800 ई. पू. तक यूनानी लोग लिखना नहीं जानते थे। किन्तु लोक-गीतों।और वीर-काव्यों में वे अपने वीरों और विजयों की कथाएँ गाते थे। इस प्रकार उनके व पूर्वजों की कहानी सुरक्षित रही। जब लिपि का विकास हो गया तो कवियों ने इन कहानियों
को लेखबद्ध कर दिया। होमर नाम के कवि ने दो प्रसिद्ध कविताएँ लिखीं। इनसे हमें प्रारंभिक यूनानियों के जीवन और समाज के विषय में बहुत जानकारी मिलती है। एशिया-माइनर के पश्चिमी तट पर ट्रॉय नाम का नगर है। इलियड में इस नगर के घेरे और
नाश की कहानी का वर्णन है। ओडिसी में ओडिसयस नामक यूनानी वीर के जोखिमपूर्ण जा कार्यों और उसके ट्रॉय से घर लौटने की कहानी लिखी गई है।

नगर-राज्यों का उदय 800 ई. पू के लगभग कुछ यूनानी ग्रामों के समूहों ने मिलकर नगर-राज्यों का रूप ले लिया। एक नगर-राज्य में सबसे ऊँचे स्थान पर एक्रोपोलिस या गढ़ बनाया जाता था।
जिससे कि नगर सुरक्षित रह सके। इस गद के चारों ओर नगर बसा होता था। समस्त यूनान और समीप के स्पार्टा, एथेस. मकदूनिया, कोरिन्थ और थीम्स आदि द्वीपों में ऐसे अनेक नगर स्थापित हो गए। इन नगर-राज्यों में पहले राजा राज करते थे। कुछ समय पश्चात् धनी जमींदारों ने सारी राजनैतिक शक्ति अपने हाथ में ले ली और राजतंत्र को समाप्त कर दिया।
नगरों की जनसंख्या बढी जब व्यापार और उद्योगों की उन्नति हुई, तो इन नगरों में धनी मध्यम वर्ग का विकास हुआ। जमीदारों की शक्ति कम करने के लिए यह मध्यम वर्ग निर्धन किसानों से मिल गया। इस संघर्ष के फलस्वरूप इन राज्यों में तानाशाहों का उदय हुआ जिन्हें यूनानी लोग टायरेट’ कहते थे। समय के साथ तानाशाही भी समाप्त कर दी गई और अधिकतर राज्यों में लोकतंत्र या कुछेक धनियों द्वारा संचालित अल्पतंत्र (Oligarchy) की स्थापना हुई।
इन नगर-राज्यों में कुछ बातें एक सी थीं। परंतु उनमें से प्रत्येक की कुछ निजी विशेषताएँ भी थीं। उनमें आपस में अनेक संघर्ष हुए और यात्रा और संचार की कठिनाइयों के कारण वे संगठित होकर एक महान राज्य का रूप न ले सके। यूनान की मुख्य भूमि
पर दो प्रमुख नगर-राज्य, स्पार्टा और एथेंस थे।

स्पार्टा का राज्य
स्पार्दा का राज्य यूनान के प्रायः सभी अन्य राज्यों से भिन्न था। इसका एक कारण यह था कि इसकी भौगोलिक स्थिति ही ऐसी थी। पर्वत श्रेणियों इसे अन्य राज्यों से पूर्णतया अलग करती थी। स्पारटा के निवासियों की सबसे अधिक रुचि सैन्यवाद और युद्ध में थी।
इसी कारण वे सात वर्ष की अवस्था से ही अपने बालको को कठिनाइयों और कष्ट सहन करने का अभ्यास कराते और उन्हें कुशल और भयंकर योद्धा बनाने के लिए प्रशिक्षण देते थे। यही उनकी शिक्षा थी। शस्त्र चला सकने वाले सभी नागरिक योद्धा होकर अपना सारा जीवन बैरको मे बिताते थे। स्पार्टा के बहुत से निवासी दास थे। अधिकतर कामी वे ही करते थे जिससे स्पार्टी के नागरिक अन्य कार्यों की चिन्ता से मुक्त रहते और युद्ध कला और शासन में समय लगाते थे। स्पार्टी के राजाओ का मुख्य कार्य सेना का नेतृत्व
करना ही था। कुलीन व्यक्तियों की एक परिषद् और एक सभा शासन-कार्य का निरीक्षण करती थी। वहीं राज कर्मचारियों का चुनाव करती और शिक्षा की व्यवस्था भी करती थी। लेकिन स्पार्टा का शासन सेना द्वारा सेना के हितों को ध्यान में रखकर ही चलाया
जाता था। सभा के सदस्य वे ही नागरिक हो सकते थे, जिनकी आय इतनी होती कि वे सेना में एक नियत स्तर के पद पर नियुक्त होने के अधिकारी होते।
स्पार्टा के निवासियों की दास-प्रथा ने स्वयं स्पार्टी के नागरिकों को ही अततः दास बना दिया। दास सदा विद्रोह करते रहते थे और उनका दमन करने के लिए राज्य को सदा ही शक्तिशाली सेना रखनी पड़ती थी। स्पार्टा का कोई भी निवासी अपनी बैरक से बाहर निहत्था नहीं निकलता था। स्पार्टा का प्रत्येक निवासी बचपन से साठ वर्ष की उम्र तक कठोर अनुशासन में अपनी बैरक में रहता था, अत उसे शिक्षा प्राप्त करने और गृहत्य जीवन बिताने का अवसर ही न मिलता था। नए विचारों के आने से उनकी जीवन पद्धति नष्ट न हो जाए, इस भय से वे व्यापार और विदेश-यात्रा की भी अनुमति नही देते थे। पार्टी के निवासी कुशल योद्धा थे। यूनान की संस्कृति के निर्माण में किसी अन्य रूप में उनका योगदान नहीं रहा। उनके काव्य और गीतों में केवल सैनिक सफलताओं का यश गाया गया है।

एथेंस का राज्य
एथेस के नगर राज्य का विकास स्पार्टा के विकास से पूर्णतया भिन्न रूप में हुआ। एथेरा, का राज्य जिन प्रदेशों पर था, उन पर इस राज्य ने धीरे-धीरे शातिपूर्ण तरीके से अधिकार किया इसलिए वहीं सैन्यवाद का विकास नहीं हुआ। एथेंस के पास बड़े अच्छे बंदरगाह
और बहुमूल्य खनिज पदार्थ थे। एथेस के निवासियों ने व्यापार में बहुत उन्नति की. जिसके कारण यहाँ नागरिक सभ्यता का विकास हुआ।
सातवीं शती ई पू में एथेस में राजतंत्र के स्थान पर धनिकों के अल्पतंत्र (Oligarchy) की स्थापना हुई। इस काल में अधिकतर भूमि किसानों के हाथ से निकलकर कुलीन लोगों के हाथ में चली गई। बहुत से किसानों ने पहले अपनी भूमि धरोहर रखी, फिर
अपने परिवार के सदस्यों को भी ऋण चुकाने के लिए घरोहर रख दिया। अत में उन्न अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ा और वे सभी दास बन गए। एथेंस में कुलीन वर्ग और दास वर्ग के अतिरिक्त कुछ अन्य स्वतन्त्र नागरिक भी थे। ये डेमोस कहलाते थे। इन वर्ग में स्वतंत्र किसान मजदूर, कारीगर और व्यापारी थे। इनमें से कुछ धनी थे। सभी लोग कुलीन वर्ग के अल्पतत्रीय शासन से असतुष्ट थे। उनके संघर्ष के फलस्वरूप 594 ई.पू. में सोलन को नया मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया। उसे सुधार करने का अधिकार
दिया गया। सोलन ने गिरवी प्रथा को समाप्त कर दिया और एथेस के उन सभी नागरिक को जो श्रण के कारण दास हो गए थे, मुक्त कर दिया। उसने यह नियम भी बना दिया कि भविष्य में एथेस का कोई निवासी ऋण न चुका सकने के कारण दास नहीं बनाया जायेगा। किंतु उसने उन दासों को मुक्त कर दिया जो विदेशों से खरीद कर लाए गए थे। सोलन ने फिर से सभा की स्थापना की और एथेंस के सभी स्वतंत्र नागरिक इसके सदस्य माने गए। उसके सुधारों से निर्धन और मध्यम दोनों वर्गों को ही लाभ हुआ। न्याय व्यवस्था का भी पुन संगठन किया गया। न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का चुनाव भी
नागरिकों के हाथ में आ गया।
469 से 429 ई. पू में पेरिक्लीज के नेतृत्व में एथेस का लोकतंत्र उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गया। यह सभा दस जनरलों को चुनती थी और वे आधुनिक मंत्रिमंडल के समान शासन चलाते थे। लगभग 15 वर्ष तक पेरिक्लीज इस मत्रिमंडल का अध्यक्षा रहा। ये जनरल सभा के प्रति उत्तरदायी थे। इसलिए ये तानाशाह नहीं हो सकते थे। से लोकप्रिय न्यायालय थे, जिनमें जूरी द्वारा मुकदमों का फैसला होता था। जूरी
के सदस्य सभी वर्गों के नागरिकों में से लाटरी द्वारा चुने जाते थे।
एथेंस के लोकतंत्र में केवल नागरिकों को राजनीतिक अधिकार और स्वतत्रता प्राप्त थी। पेरिक्लीज के समय में कुल जनसंख्या का केवल घोडा भाग ही नागरिक
वर्ग के अन्तर्गत आता था।

युद्ध और यूनानी लोकतंत्र की समाप्ति पांचवीं शती ई.पू. में एथेंस के लोकतंत्र को दो युद्धों में फसना पड़ा, जिसके कारण उसकी महानता समाप्त हो गई। एथेस को पहला युद्ध शक्तिशाली ईरानी साम्राज्य और उसके सम्राटदारा के विरुद्ध लड़ना पड़ा। दारा ने पहले ही सिंधु नदी से लेकर एशिया माइनर तक के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था और अब उसने इजियन सागर को पार करके विजय के लिए यूनान पर आक्रमण किया।
उसकी बड़ी सेना एक बड़े जहाजी बेड़े की सहायता से एथेंस के निकट मराथन नामक स्थान पर जा उतरी। यूनान के इतिहास में पहली बार सारे राज्यों ने
मिलकर एक शत्रु के विरुद्ध युद्ध किया। यूनानी सेनाए संख्या में बहुत कम फिर भी 490 ई.पू में मराथन के युद्ध में वे इतनी वीरता से लड़ी कि उन्होंने ईरानी सेनाओं को खदेड दिया।
दस वर्ष बाद ईरानियों की सेना ने यूनान पर फिर आक्रमण किया, परतु वह अपने उद्देश्य में सफल न हुई। इस बार धर्मोपिले के दर्रे पर स्पार्टा के कुछ थोडे-से योद्धाओं से उनकी मुठभेड हुई। इन वीरों ने अपने जीते जी अंत तक इस तग दरें की रक्षा की।
ईरानियों ने एथेंस नगर में आग लगा दी, किन्तु अंत में उन्हें वहाँ से पीछे हटना पड़ा इसी युद्ध के कारण यूनान के राज्यों में एथेंस प्रमुख बन गया।
एथेंस और स्पार्टा के बीच 431 ई.पू से 404 ई. पूतक पेलोपोनीशियन युद्ध हुआ।
इ. युद्ध के कारण एथेस का पतन हो गया। ईरानी युद्धों के समय एथेस ने अन्य यूनानी राज्यों से मिलकर एक संघ बनाया था। उस युद्ध के बाद उसने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस संघ की सहायता से अपनी नौ-सेना की शक्ति बहुत बढ़ा ली। एथेंस की बढती हुई शक्ति को देखकर स्पार्टी के निवासी भयभीत हो गए। एथेस और स्पार्टी के बीच सदा ही गर्मा-गर्मी रहती थी। इस युद्ध में यूनान के कुछ राज्यों ने एथेस की सहायता
की और कुछ ने स्पार्टा की। यह युद्ध बहुत दिनों तक चलता रहा। अंत में एथेस की पराजय हुई और इसी के साथ इस देश में लोकतंत्र की समाप्ति हो गई। एथेस को स्पार्टी का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा। पेलोपोनीशिया के युद्ध से यूनान की महान संस्कृति का पतन प्रारंभ हो गया। इस युद्ध के पश्चात कई वर्षों तक यूनान घरेलू युद्धों में फसे रहे और इन्हीं युद्धों में इनकी सारी शक्ति समाप्त हो गई।

सिकंदर का साम्राज्य
एथेस की हार के बाद मकदूनिया के राजा फिलिप ने यूनान के अधिकतर राज्यों पर अधिकार कर लिया। उसके पुत्र सिकंदर को अपने पिता की बड़ी सेना पैतृक संपत्ति के रूप में मिली और 20 वर्ष की अवस्था में सिकदर ससार विजय करने के लिए चल
दिया। 336ई पू से 320 ई.पू के 13 वर्षों के समय में उसने यूनानी राज्यों को अपना नेतृत्व स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया। इसी के साथ उसने उस समय के सबसे महान और शक्तिशाली ईरानी साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह भारत की सीमा पर आ गया। यहाँ उसने 326 ई.पू में झेलम नदी के तट पर राजा पोरस को हराया और सिधु नदी के रास्ते उसके मुहाने पर पहुँचा, जहाँ से वह मैसोपोटामिया
लौट गया। वहीं 323 ई.पू में 32 वर्ष की आयु में बुखार से उसकी मृत्यु हो गई।
सिकदर की विजय के कारण विश्व में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. यूरोप और एशिया के बीच व्यापार बढ़ा और अनेक नए नगर बसाए गए।
सिकदर की मृत्यु के बाद उसके सेनापतियों ने उसके राज्य को आपस में बाँट लिया।
उसके एक सेनापति सेल्यूकस को ईरान, मैसोपोटामिया और सीरिया प्राप्त हुए। बाद में
सेल्यूकस ने भारत पर हमला किया। परतु चद्रगुप्त मौर्य ने उसे हरा दिया। इस युद्ध फलस्वरूप सेल्यूकस के साम्राज्य और मौर्य साम्राज्य के बीच मैत्री सबंध स्थापित हो गए। सिकंदर का एक सेनापति टॉल्मी (Ptolemy) था। वह मिस, फिलिस्तीन और
फिनीशिया का शासक बना। मिस्र की विजय के उपलक्ष्य में सिकंदर ने सिकंदरिया का नगर बसाया। यूनान के पतन के बाद यह नगर बहुत दिनों तक यूनानी संस्कृति और शिक्षा का केन्द्र रहा। टॉल्मी ने सिकंदरिया में कला, साहित्य और शिक्षा की देवी का
एक मंदिर बनवाया। यह म्यूजियम नाम से जाना जाता है। इसमें एक वेधशाला और एक पुस्तकालय था। टॉल्मी का आदेश था कि जो भी पुस्तक मिस्र में आए उसकी एक प्रति इस पुस्तकालय को अवश्य दी जाए।
सिकदर और टॉल्मी की मृत्यु के बाद भी उनके अच्छे काम चलते रहे। सिकंदरिया के म्यूजियम में कार्यरत विद्वानों ने उसे आगे बढ़ाया। रेखागणित का जनक यूक्लिड इसी स्थान पर रहता था। भूगोल के विद्वान इरैटोस्थनीज ने पृथ्वी की परिधि का हिसाब यहीं
लगाया था और आर्किमिडीज ने अपने उम सिद्धांतों का प्रतिदान भी इसी म्यूजियम में किया जिन्हें बालक आज भी स्कूल में पढ़ते हैं। इनकी और अन्य बहुत से उन विद्वानों की शिक्षाएँ जिन्होंने इस म्यूजियम में कार्य किया, आज भी विश्व की बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। दूसरी शती ई. पू. में रोम के साम्राज्य का पूर्व की ओर विस्तार होने लगा। और 30 ई. पू. के बीच रोम के आक्रमणों के फलस्वरूप यूनानियों का सारा प्रदेश और उनका साम्राज्य रोम के साम्राज्य के भाग बन गए।

यहूदी और ईसाई धर्म का इतिहास

यहूदी धर्म और ईसाई धर्म
तुम अब तक प्राचीन भारत, ईरान, चीन, यूनान और इटली के जनगणों के धर्मों और धार्मिक विश्वासों के बारे में पढ़ चुके हो। इनमें से कुछ धर्म, उदाहरण के लिए बौद्ध धर्म अपनी जन्मभूमि से बाहर दूर देशों में फैले और उन्होंने अनेक देशों की जीवन और
संस्कृति को प्रभावित किया। प्राचीन काल में पश्चिम एशिया में दो प्रमुख धर्मों का उदय
हुआ और उन्होंने विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ये हैं: यहूदी धर्म
और ईसाई धर्म। इन दोनों धर्मों का जन्म फिलिस्तीन में हुआ।
यहूदी धर्म

यहूदी धर्म यहूदियों अथवा हिब्रू लोगों का धर्म है। हिब्रू लोग अब्राहम के नेतृत्व में मैसोपोटामिया में रहते थे। वहाँ से वे धीरे-धीरे फिलिस्तीन जा बसे। जब फिलिस्तीन में दुर्भिक्ष पड़ा तो 1700 ई. पू. के बाद बहुत से हिब्रू कबीले मिस्र चले गए। जब मिस्र
के शासक ने उन पर बहुत अत्याचार किए तब वे ई.पू. की 13 वीं शताब्दी में मूसा के नेतृत्व में फिलिस्तीन चले गए। मूसा के पहले हिब्रू कबीलों के अनेक देवता थे। मूसा ने विभिन्न कबीलों को संगठित किया। उन लोगों ने एक देवता के रूप में यहवे या जेहोवा को अपना भगवान माना। यहूदियों का विश्वास है कि स्वयं ईश्वर ने मूसा के माध्यम से दस उपदेश दिए थे। इन उपदेशों में एक ईश्वर में आस्था प्रकट की गई है। साथ ही विशिष्ट प्रजा ‘, जैसा कि हिब्रू अपने आपको कहते हैं, के जीवन को निर्देशित करने वाले नियमों के प्रति भी इन उपदेशों में आस्था प्रकट की गई है।
फिलिस्तीन में हिब्रू लोगों ने राजतंत्रात्मक शासन पद्धति वाले एक संयुक्त राज्य की स्थापना की। इस राज्य की राजधानी जरुसलम में बनाई गई। एक रोचक बात यह है कि जरुसलम नगर संसार के तीन बड़े धर्मों के लिए पवित्र भूमि बन गया।। ये तीनों हैं-यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म। हिब्रू राजाओं में सॉलोमन बहुत विख्यात है। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार वह बहुत बुद्धिमान और न्यायी राजा था। हिब्रुओं का सयुक्त राज्य आगे चल कर दो राज्यों में बँट गया-इजरायल और जूदा। इ. पू.की छठी शताब्दी तक दोनों राज्यों को अधीन किया जा चुका था-इजरायल को असीरियाइयो अब
द्वारा और जुदा को बाबुल वालों द्वारा। बाद के वर्षों में फिलिस्तीन पर पहले ईरानियों द्वारा और बाद में सिकदर द्वारा कब्जा किया गया। आगे चलकर वह रोम के प्रभाव क्षेत्र वि थे में यहूदियों आ गया की एक और 70 बड़ी ई संख्या. में रोम ने फिलिस्तीन सम्राज्य का छोड़ एक दिया प्रदेश बन और गया वे संसार। इस के काल विभिन्न अवधि भागों जा बसे।
धार्मिक विश्वास

यहूदी धर्म की बुनियादी शिक्षा एक ईश्वर में विश्वास है। यह ईश्वर यहवा है जो अपनी प्रजा से प्रेम करता है कितु जब वे कुमार्ग पर चलते हैं तो उनसे बदला लेता है। यहूदियों के कुछ परवर्ती धर्मोपदेशकों (पैगंबरों) ने कहा कि ईश्वर मानव मात्र से प्रेम करता है और पश्चाताप करने वाले पापी को क्षमा कर देता है।। यहूदी धर्म न्याय, दया और विनम्रता सिखाता है। यहूदियों का एक महत्वपूर्ण विश्वास यह है कि उनको पवित्र करने और संसार को पाप एवं दुष्टता से मुक्त कराने के लिए मसीहा (त्राणकर्ता) एक दिन पृथ्वी
पर अवतरित होगा। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा ही यह ‘ मसीहा थे और इसी से वे ईसा को’ क्राइस्ट ‘ या खीष्ट और’ मसीह ‘कहते हैं। किंतु यहूदियों का विश्वास है कि मसीहा ने अभी तक जन्म नहीं लिया है। यहूदी धर्म ने ही परवर्ती एकेश्वरवादी ईसाई और मुस्लिम धर्मों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
हिब्रू (यहूदियों के) धर्मग्रंथ

वे विभिन्न कृतियाँ ही जो’ ओल्ड डेस्टामेंट ‘ और’ ऐपोकृफा ‘ का निर्माण करती हैं, यहूदियों की पवित्र धर्म-पुस्तकें हैं। इन पुस्तकों में यहूदियों का इतिहास है और वह धार्मिक-नैतिक नियमावली है जिसका उन्हें पालन करना चाहिए। इनमें पुराण, आख्यान और कविताएँ तो हैं ही साथ ही चिकित्सा और ज्योतिष की बातें भी हैं। ये पुस्तकें यहूदियों और ईसाइयों
दोनों के लिए पवित्र व पूज्य हैं।
ईसाई धर्म

ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस एक यहूदी थे। उनका जन्म जरुसलम के निकट बैथलहम नाम स्थान पर हुआ था। उनकी माता का नाम मेरी था। जीसस के जीवन के पहले शब्दों 30 से समझ वर्षों के विषय में हमारा ज्ञान बहुत अपूर्ण है।इस समय वे अपना उपदेश शीधे साधे शब्दो में कहानियों के द्वारा दिया करते थे। उनके इन उपदेशो को साधारण व्यक्ति सरलता से समझ लेते थे। वे बहुत से रोगों की चिकित्सा भी सरलता पूर्वक कर लेते थे। इस बात की सब जगह प्रसिद्धि हो गई। उनके सादा जीवन, आकर्षक व्यक्तित्व, सबके लिए अत्यधिक और सहानुभूति के कारणं बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी हो गए।
जीसस निर्भीक होकर उन बातों की कटु आलोचना करते थे जिन्हें वे बुरा समझते थे। इस कारण बहुत से धनी और प्रभावशाली लोग उनके शत्रु हो गए। इन लोगों ने फिलिस्तीन के रोमन गवर्नर पोण्टियस पाइलेट से जीसस के विरुद्ध शिकायत की कि जीसस अपने को यहूदियों का राजा कहता है। और इस प्रकार यहूदियों को रोमन शासकों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए भड़का रहा है। इस पर जीसस को बंदी बना लिया गया और, उन्हें क्रॉस पर प्राणदंड दिया गया। इसी कारण ईसाई क्रॉस को पवित्र चिह्न मानते हैं। ईसाइयों का विश्वास है कि क्रॉस पर बलिदान होने के तीसरे दिन जीसस जीवित हो गए। इसी को मृत्यु के बाद पुनर्जीवित कहा जाता है। प्रति वर्ष इसी घटना की स्मृति में ईसाई लोग ईस्टर का त्यौहार मनाते हैं। ‘ गुड फ्राइडे’ वह दिन समझा जाता है, जिस दिन जीसस की मृत्यु हुई थी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि पुनर्जीवन के बाद चालीस दिन तक वे अपने मित्रों व शिष्यों के बीच में रहे और अंत में स्वर्ग चले गए। बड़े दिन को ईसाई उनके जन्म के उपलक्ष्य में मनाते हैं। ईसाई संवत् 1 ईसवी से प्रारंभ होता है। परंपरा के अनुसार इसे जीसस के जन्म का वर्ष माना जाता है। ए. डी. अर्थात् एनो डोमिनी का अर्थ है स्वामी के संवत् में। सत्य तो यह है कि जीसस के जन्म की तिथि निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों। बी. सी. का अर्थ का मत है कि जीसस का जन्म 1 ईसवी से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था है बिफोर क्राइस्ट,अर्थात् ईसा से पूर्व। हम ईसा के जन्म से पूर्व की तिथियों को बी.सी. (ई.पू.) लिखकर प्रकट करते हैं।
जीसस बहुधा ईश्वर के राज्य की चर्चा किया करते थे इससे उनका यह अभिप्राय था कि पृथ्वी पर ईश्वर की सत्ता ही सबसे अधिक बलवती है। वे कहते थे कि ईश्वर का राज्य शीघ्र की स्थापित होने वाला है और मनुष्य ईश्वर प्रेम से पवित्र होकर और उसमें पूर्ण आस्था रखकर उस ईश्वर के राज्य की स्थापना कर सकता है। वे ईश्वर को पिता और अपने को ईश्वर का पुत्र कहते थे। वे मनुष्य मात्र से प्रेम करते थे। मनुष्यों
को अपने पड़ोसियों से प्रेम करने की शिक्षा देते थे।ईसाई धर्म के अनुसार इस पृथ्वी पर जीसस क्राइस्ट का जन्म ईश्वर का उद्देश्य पूरा करने के लिए हुआ था। मनुष्यों का पाप से उद्धार करने के लिए वे इस संसार
में रहे और इसीलिए उन्होंने अत्यंत कष्टपूर्ण मृत्यु झेली। ईसाइयों का विश्वास है कि जीसस मृत्यु के पश्चात् भी जीवित रहे। इसीलिए उन्होंने सब मनुष्यों को आशा दिलाई कि जो कोई पापों के लिए पश्चाताप करेगा और ईश्वर कृपा के लिए प्रार्थना करेगा
उसकी ईश्वर अवश्य रक्षा करेंगे।
जीसस की सीधी-सादी शिक्षाएँ मनुष्यों के हृदयों में घर कर गई। उन्होंने उनमें
नवीन आत्म-विश्वास और साहस का संचार किया। धीरे-धीरे रोम में ईसाई धर्म का प्रचार
बढ़ा और सेंट पीटर गिरजाघर का बड़ा पादरी इस संसार में जीसस क्राइस्ट का प्रतिनिधि माना जाने लगा। ईसाई लोग उसे पोप अर्थात् पिता कहने लगे।
कहा जाता है कि रोम का सम्राट कास्टेटाइन भी ईसाई बन गया। चौथी शताब्दी
के अंत तक ईसाई धर्म रोम के साम्राज्य का धर्म बन गया था। इस समय तक ईसाई
चर्च का संगठन धर्मतंत्रात्मक रीति से होने लगा था।
इंजील अथवा बाइबिल

ईसाइयों की धर्म-पुस्तक ‘ बाइबिल’ अथवा ‘ इंजील’ है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘ पुस्तक’। इंजील के दो मुख्य भाग हैं। पहले भाग में जिसे ओल्ड टेस्टामेण्ट कहते हैं, यहूदियों के धार्मिक विश्वासों का इतिहास है। न्यू टेस्टामेण्ट में जीसस क्राइस्ट का जीवन चरित्र और शिक्षाएँ दी हुई हैं। इंजील पहले यहूदियों की भाषा हिब्रू में लिखी गई थी। बाद में इसका यूनानी भाषा में अनुवाद किया गया। इंजील का अंग्रेजी अनुवाद, जिसका अब साधारणतया सर्वत्र प्रयोग किया जाता है, सत्रहवीं सती के शुरू में इंग्लैंड के राजा जैम्स
प्रथम की आज्ञानुसार तैयार किया गया था।
ठीक-ठीक यह कहना संभव नहीं कि मानव इतिहास का प्राचीन काल कब समाप्त हो गया। आम तौर पर यह कहा जा सकता है कि प्रथम सहस्राब्दि ई. के उत्तरार्द्ध के दौरान विश्व के अनेक भागों के सामजिक-आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने लगे। वे परिवर्तन इतने दूरगामी थे कि कहा जा सकता है कि उन्होंने इतिहास में एक नया युग आरंभ किया। मगर वे न तो एक समान थ और न ही सारे संसार में उनकी रफ्तार एक सी थी। तुम देख चुके हो कि पश्चिम में रोमन साम्राज्य बर्बर लोगों के आक्रमणों के कारण किस प्रकार नष्ट हो गया। दास-प्रथा भी, जो रोम की सभ्यता की एक विशेषता थी, लुप्त हो गयी। कुछ अन्य क्षेत्रों में जो परिवर्तन हुए वे इतने स्पष्ट नहीं थे कि अतीत से उन्हें उसी तरह अलग कर दें जैसा रोमन सभ्यता के संबंध में देखा गया था। परंतु परिवर्तनों का जो भी स्वरूप और उनकी जो भी रफ्तार रही हो, लगभग 500 ई. के बाद जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएँ उदित होने लगीं वे पिछले काल
की अपेक्षा बिलकुल भिन्न थीं। कुछ क्षेत्रों में प्राचीन सभ्यताओं की उपलब्धियाँ आगे के विकास का आधार बनीं। दूसरे क्षेत्रों, जैसे पश्चिमी यूरोप में यूनानी और रोमन सभ्यताओं की उपलब्धियों को भुला दिया गया। उन्हें लगभग एक हजार वर्ष बाद ही फिर ढूंढ निकाला गया। अगले काल में सभ्यता के अनेक नये केंद्र विकसित हुए। प्राचीन सभ्यताओं की कुछ उपलब्धियों को सभ्यता के इन नये केंद्रों की संस्कृतियों में समाविष्ट कर लिया गया और वहाँ से अन्य क्षेत्रों को दिया गया।
चीन का पूरा ब्यौरा

OFFICIAL NAME People’s Republic of China
HEAD OF STATE President: Xi Jinping Vice President – Li Yuanchao
HEAD OF GOVERNMENT – Premier: Li Keqiang
CAPITAL – Beijing (Peking)
OFFICIAL LANGUAGE Mandarin Chinese
OFFICIAL RELIGION – none-
CURRENCY Yuan (Y)
POPULATION 1,397,364,000 (2019)
POPULATION RANK 1 (2019)
Religions Buddhist 18.2% Christian 5.1% Muslim 1.8% folk religion 21.9% Hindu 0.1% Jewish 0.1% Other 0.7% Unaffiliated 52.2% (2010)
TOTAL AREA (SQ MI)3,696,100 (SQ KM)9,572,900
DENSITY PERSONS PER SQ MI(2017) 374.5 PERSONS PER SQ KM(2017) 144.6
URBAN-RURAL POPULATION. Urban: (2015) 55.6%. Rural: (2015) 44.4%
LITERACY Male: (2015) 98.2%. Female: (2015) 94.5%.
LIFE EXPECTANCY AT BIRTH – Male: (2015) 73.6 years. Female: (2015) 79.4 years.

Geography। 3.7 मिलियन वर्ग मील से अधिक क्षेत्र को कवर करते हुए पूरी तरह से एशिया में स्थित सबसे बड़ा देश है। दक्षिण-पश्चिम में तिब्बत है, जिसे चीन ने 1950 में अधिकार कर लिया था। गोबी रेगिस्तान उत्तर में स्थित है। चीन में तीन प्रमुख नदी हैं: पीली नदी (हुआंग हे) 5464 किमी लंबी, यांग्त्ज़ी नदी (चांग जियांग) दुनिया की तीसरी सबसे लंबी नदी 6300 किमी और पर्ल नदी (झू जियांग) 2197 किमी) लंबी है।
Government 1949 से चीन को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के रूप में गठित किया गया है। यद्यपि देश खुले तौर पर साम्यवाद को बढ़ावा देता है, चीन की विचारधारा “चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद” है; माओत्से तुंग से डेंग शियाओपिंग के लिए देश के नेतृत्व के पारित होने के बाद, देश ने चीन की भौतिक स्थितियों के अनुरूप अपनी मार्क्सवादी-लेनिनवादी नीतियों को पूरी तरह से संशोधित किया। इसके परिणामस्वरूप देश के बाद के नेताओं ने साम्यवाद को अपने हाथों में ले लिया, जैसे कि डेंग शियाओपिंग थ्योरी और शी जिनपिंग ने लड़ाई लड़ी। देश ने सोवियत मॉडल को छोड़ दिया, और इसके बजाय इस विचार का अनुसरण किया कि, शास्त्रीय मार्क्सवादी विचार के अनुसार, देश को अपनी अर्थव्यवस्था और बाजारों में सुधार करने की आवश्यकता थी, इससे पहले कि यह समतावादी साम्यवाद का पीछा कर सके। देश ने अधिक से अधिक बाजार प्रभाव को आमंत्रित किया है, और दशकों से चीन दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। एकात्मक एकदलीय प्रणाली के रूप में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सभी सरकारी कार्यों को संभालती है। चुनाव केवल स्थानीय पीपुल्स कांग्रेस के सदस्यों के लिए आयोजित किए जाते हैं, जो उनके ऊपर के विधायी समूहों के सदस्यों के लिए वोट करते हैं, जैसे कि केवल प्रमुख विधायक नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के सदस्यों का चुनाव करते हैं। यद्यपि अन्य दलों को स्थानीय स्तर पर कुछ प्रतिनिधित्व की अनुमति है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व को चीनी संविधान में लिखा गया है। क्षेत्रीय पार्टी के नेता पर्याप्त अधिकार का प्रयोग करते हैं, जो आगे चलकर शासी प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण करता है।

संस्कृति चीन दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है, और इसने कला, साहित्य, वास्तुकला, इंजीनियरिंग और अन्य सभी प्रकार के प्रसिद्ध योगदान दिए हैं। पश्चिमी दर्शक चीन की वास्तुकला से विशेष रूप से परिचित होंगे, विशेष रूप से ग्रेट वॉल ऑफ चाइना। एक तरफ किलेबंदी, चीनी वास्तुकला में कई प्रसिद्ध विशेषताएं हैं; पाठकों को प्रमुख इमारतों पर व्यापक गैबल्स के उपयोग से परिचित हो सकता है। अधिक विशिष्ट स्टाइलिंग क्षेत्र से क्षेत्र में नाटकीय रूप से भिन्न हो सकते हैं। चीनी वास्तुकला पड़ोसी देशों पर काफी प्रभावशाली रही है, और पश्चिम के साथ संपर्क ने अपनी वैश्विक पहुंच को आगे बढ़ाया है। चीनी वास्तुकला में पश्चिम की तरह, समय के साथ विकसित और विकसित हुआ और विदेशी संस्कृतियों के संपर्क के बाद। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में शंघाई ने शहर के प्रसिद्ध शिकुमेन घरों की तरह अपनी अनूठी शैली बनाने के लिए कई पश्चिमी विचारों और सौंदर्यशास्त्र को अनुकूलित किया। देश बीजिंग में राष्ट्रीय स्टेडियम की तरह समकालीन वास्तुकला के कई शानदार उदाहरणों का भी घर है।
Food चीन अपनी पाक परंपरा के लिए बहुत प्रसिद्ध है, और चीनी भोजन के लिए भी । चीन में आठ प्रमुख व्यंजन हैं; अनहुइ, कैंटोनीज, फुजियान, हुनान, जिआंगसु, शैंडॉन्ग, सिचुआन और झेजियांग। कई और अधिक क्षेत्रीय किस्में भी हैं। चीन के विशाल परिदृश्य, उष्णकटिबंधीय से रेगिस्तान से लेकर उप-क्षेत्र तक, कई अलग-अलग प्रकार के भोजन और खाना पकाने के तरीकों का उत्पादन किया गया है; ये तरीके और आधार सामग्री यूरोपीय / फ्रांसीसी यूरोपीय व्यंजनों के परिदृश्य से भिन्न हैं, और पूरे इतिहास में चीनी व्यंजनों को बहुत महत्व और कलात्मकता के साथ ग्रहण किया गया है। कई हज़ार वर्षों से, चीन में भोजन को स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, और आज भी चीनी खाद्य चिकित्सा अत्यधिक लोकप्रिय है।
Pakistan

OFFICIAL NAME – Islamic Republic of Pakistan
Senate National Assembly
President: Arif Alvi
Prime Minister- Imran Khan.
CAPITAL- Islamabad
OFFICIAL LANGUAGES- English; Urdu
OFFICIAL RELIGION- Islam
MONETARY UNIT- Pakistani rupee
POPULATION (2019 est.) 219,382,000
TOTAL AREA (SQ MI)- 340,499
TOTAL AREA (SQKM)- 881,889
LIFE EXPECTANCY AT BIRTH Male: (2017) 66.1 years Female: (2017) 70.1 years
LITERATE Male: (2015) 72.2% Female: (2015) 47.3%
पाकिस्तान दक्षिण एशिया का आबादी वाला और बहुराष्ट्रीय देश। मुख्य रूप से भारत-ईरानी भाषी आबादी के साथ, पाकिस्तान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से अपने पड़ोसियों ईरान, अफगानिस्तान और भारत के साथ जुड़ा हुआ है। 1947 में पाकिस्तान और भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से, पाकिस्तान को अपनी विशाल मुस्लिम आबादी द्वारा अपने बड़े दक्षिणपूर्वी पड़ोसी से अलग कर दिया गया है। पाकिस्तान ने राजनीतिक स्थिरता और निरंतर सामाजिक विकास प्राप्त करने के लिए अपने पूरे अस्तित्व में संघर्ष किया है। इसकी राजधानी इस्लामाबाद है, जो देश के उत्तरी भाग में हिमालय की तलहटी में है, और इसका सबसे बड़ा शहर अरब सागर के तट पर दक्षिण में कराची है।
