मिस्र की सभ्यता

मिस्र के पिरामिड

मिस्र की सभ्यता
मिस्र को नील नदी का वरदान कहा जाता
है। इस नदी के दोनों किनारों की सकरी पट्टी हरी और उपजाक है. यह वह क्षेत्र है जहाँ पर मिस्र की सभ्यता फली-फूली।
इतिहासकार मिस्र के इतिहास को तीन कालो में बाँटते है-प्राचीन राज्य, मध्यकालीन राज्य और नवीन राज्य । प्राचीन राज्य को पिरामिडों का युग भी कहते है।
इस युग में काहिरा के निकट स्थित मेम्फिस नगर इस राज्य की राजधानी था ।
इस काल (3000-2000 ई.पू) और मध्य कालीन राज्य (2000-1750 ई.पू) के दौरान मिस्र की सभ्यता कला, धर्म और विज्ञान की प्रगति के कारण विकसित
हुई। मगर अठारहवीं शताब्दी ई. पू. में हाइकसोस आक्रमणकारियों ने मिस्र पर हमला किया। वे पूर्व की ओर से आए थे। वे खानाबदोश थे और उनकी सभ्यता मिस्र के निवासियों की सभ्यता की तुलना में
बहुत कम विकसित थी। उनका राज्य थोड़े ही दिन चला और जल्दी ही मिस्र के राजाओं ने अपने देश को फिर जीत लिया। इस प्रकार नवीन राज्य की स्थापना हुई।

राजा , पुरोहित , किसान और दास

मिस्र के सामाजिक वर्ग राजा से दास तक
मिस्र का राजा फराओ (Pharach) कहलाता था। उसके पास पूर्ण शक्ति होती थी। फराओ सारी धरती का मालिक था और वह जो कहता था वही कानून हो जाता था। उसे देवता समझा जाता था और उसकी मूर्तियों मदिरों में स्थापित की जाती थीं। उसके कार्यों और विजयो का विवरण मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण कराया जाता था। समाज में फराओ के पश्चात् पुरोहितो, राजकर्मचारियों, कलाकारों और दस्तकारों का स्थान था जो शहरों से बाहर रहते थे। उनके बाद किसानों का स्थान था जो शहरो से बाहर रहते थे. उनके बाद दास आते थे जो आमतौर से युद्धबंदी होते थे और राजा उनका मालिक होता था।

मिस्र का एक मन्दिर

प्राचीन मिस व्यवसाय, वास्तुकला और शिल्प
यहाँ के लोगो का सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय था कृषि नदियों प्रति वर्ष भूमि को उपजाऊ बनाती और यहां के निवासी नहरे बनाते थे, जिससे वर्ष भर फसल उगाने के लिए पानी मिल सके। ऐसा लगता है कि 3000 ई.पू में भी ये बैलों की सहायता से हल चलाते थे।
अन्य प्रारंभिक सभ्यताओ के लोगों की भाति मिस्र के निवासी भी पशु-पालन करते थे। साधारणतया मनुष्य बकरी, कुत्ते, गधे, सुअर और बत्तख पालते थे। कहीं कहीं लगता है कि उनके पास ऊंट भी थे। मिस में घोड़े को पहली बार हाइकसोस लोग ले आए। ये घोडे
युद्ध के समय उनके रथों को खीचते थे।

ममी के बॉक्स का ऊपरी भाग

यहाँ के वास्तु कला और शिल्पकला श्रेष्ठ थी। प्रारम्भिक काल में मिस्र की इमारतों में पिरामिड सर्वश्रेठ थे । उस काल की महान उपलब्यिों में से 30 बडे और बहुत छोटे पिरामिड आज तक विद्यमान है। उन सब में से भव्य काहिरा के पास गीजा का महान पिरामिड है। इसका निर्माण 2650 ई.पू.के आस-पास प्राचीन राज्य के फराओ सियोफ (खुफ) ने किया था। प्राचीन यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार करीब तीन लाख लोगों ने 20 वर्षों की मेहनत के बाद इसे पूरा किया। यह बड़ी इमारत पथ के बहुत बडे भारी टुकड़ों को जोड़कर बनाई गई है। कहते हैं कि इसको पूरा करने के लिा एक लाख मजदूरों ने 20 वर्ष तक कार्य किया था। पत्थर के इन-भारी टुकड़ों को गढकर चढाई के ऊपर खिसका कर चढ़ाया जाता था। और फिर बड़ी सावधानी तथा निपुणता से इनकी जड़ाई की जाती थी। इसके लिए इजीनियरी संबंधी आश्चर्यजनक कौशल की आवश्यकता पड़ती थी। निसंदेह पिरामिडों की प्राचीन ससार की सात आश्चर्यजनक चीजों में रखना सर्वथा उचित है।
पिरामिड मिस्र के राजाओं के मकबरे थे इसलिए उनमें उनकी ममियों को और इस्तेमाल में आने वाली सभी प्रकार की बहूमूल्य वस्तुओं को रखा जाता था। इन पिरामिडों को बने शताब्दियों हो गई। इस दीर्घकाल में उनको लूटा गया किन्तु वर्तमान शताब्दी के तीसरे दशक में तूतन खामन का मकबरा पूरी तरह सुरक्षित दशा में मिला। इस मकबरे की बहुमूल्य वस्तुएँ आज भी काहिरा के संग्रहालय में देखी जा सकती है। इस मकबरे की दीवारों पर कई बड़े और सुंदर चित्र है। उनसे तत्कालीन मिस-निवासियों के जीवन के विषय में हमें बहुत जानकारी प्राप्त होती है, क्योंकि चित्रों में अनेक युद्धों, शिकार और बलिदान संबंधी जुलूसों के दृश्य दिखलाए गए है, दैनिक जीवन के अन्य बहुत से दृश्य भी इसमें चित्रित है।
मिस्र वास्तुकला का एक अन्य अजीब नमूना स्फिक्स है। स्फिक्स पौराणिक कथाओं में वर्णित एक जानवर है जिसका शरीर सिंह का और सिर मनुष्य का है। प्रत्येक स्फिक्स की मूर्ति बढे ठोस पत्थर की एक चट्टान को तराश कर बनाई गई थी। मिस्री मंदिर भी उल्लेखनीय इमारतें है। कार्नाक के मंदिर को बड़े पैमाने पर मूर्तियों और शिल्पकलाओं से सुसज्जित किया गया था। इनमें 130 शानदार स्तम्भो वाला एक
हॉल है और सिफक्सों की एक गली मंदिर से नदी तक बनी हुई है। दूसरा प्रसिद्ध मंदिर अबू सिम्बल का था। इसे बलुआ पत्थर (Sandstone) की चट्टान को काट कर बनाया गया है। मंदिर के भीतरी भाग में हॉलों की एक कतार थी, जो ठोस चट्टान में लगभग 60 मीटर खोदकर बनाई गई थी। यह मंदिर सूर्य देवता के निमित्त बनाया गया था। उगते हुए सूर्य की किरणें इस मंदिर को प्रकाशित करती थीं। यह इस मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता है। इसीलिए यह उगते हुए सूर्य का मंदिर कहा गया है। कार्नाक और अबू सिम्बल दोनों नील नदी के किनारे स्थित थे। आज से लगभग
35 वर्ष पूर्व आस्वान में एक ऊँचा बाँध बनाने का कार्य शुरू हुआ। यह बात स्पष्ट हो गई कि बाघ के तैयार होने पर अबू सिम्बल पानी में डूब जाएगा। इसलिए यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय प्रयास से इन स्मारकों की रक्षा करने की एक योजना आरंभ की। स्मारकों की रक्षा करने के उद्देश्य से अनेक देशों के पुरातत्वविदों के दल इन स्मारकों को मूल स्थान से हटाने के काम में लग गए। इसमें भारत के पुरातत्वविदों के एक दल ने भी
भाग लिया था। भारत में नार्गाजुन सागर बाँध बनने पर नागार्जुन कोण्डा के स्मारक उसी तरह बच गए।

मिस्री लिपि

लिपि ( Script)
मिस्र निवासियों ने शायद लिखने की कला 3000 ई. पू. से पहले ही सुमेर निवासियों से सीखी थी, किन्तु उनकी लिपि कीलाकार लिपि की नकल नहीं है। मिस की लिपि हेरोग्लिफिक कहलाती है। इसका अर्थ है पवित्र लिपि’ इसमें 24 चिह्न थे जिनमें से प्रत्येक एक व्यंजन अक्षर का प्रतीक था। इस लिपि में स्वर वर्ण नहीं लिखे जाते थे। बाद में मिस्र निवासियों ने विचारों के लिए संकेतों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया।
इस प्रकार चिहनों की संख्या बढ़कर 500 हो गई। थोड़े ही दिनों के बाद लोगों को लिपि का महत्व मालूम हो गया और सुमेर की तरह ही लेखन का विकास एक विशेष कला के रूप में हुआ। लिपिकों का समाज में एक प्रमुख स्थान था। वे पेपिरस नाम के पेड़ के पत्तों पर सरकंडे की कलम से लिखते थे। इसी से अंग्रेजी भाषा का पेपर शब्द बना जिसका अर्थ कागज है।
कीलाकार लिपि के पढ़े जाने की कहानी जितनी दिलचस्प है, हेरोग्लिफिक लिपि के पढ़े जाने की कहानी भी उससे कम दिलचस्प नहीं है। फ्रांस के प्रसिद्ध विजेता नेपोलियन ने 1798 में मिस्र पर हमला किया। उसके साथ कई विद्वान थे। नील नदी
के मुहाने के पास एक पत्थर खोज निकाला जो रोसेट्टा पत्थर के नाम से प्रसिद्ध है। इस पत्थर पर एक अभिलेख तीन लिपियों-हेरोग्लिफिक, प्राचीन मिस्र-निवासियों की एक अन्य लोकप्रिय लिपि डिमोटिक और यूनानी-लिपि में उत्कीर्ण था। धैर्य के साथ
दीर्घकाल तक परिश्रम करने के बाद शैम्पोल्यी (1790-1832) नामक एक फ्रासीसी विद्वान मिस की लिपि के सारे अक्षरों को पढ़ने में समर्थ हो गए। जिस प्रकार बेहिस्तून अभिलेख की सुमेर लिपि के पढ़े जाने से सुमेर-सभ्यता के द्वार खुले उसी प्रकार इस खोज से
मिस की सभ्यता को समझने के लिए नए द्वार खुले।
प्राचीन मिस्र में विज्ञान और गणित मिस्र वालो ने ज्ञान के अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की। उन्होंने अकों की एक दशमलव प्रणाली का विकास किया। अभीष्ट संख्या लिखने के लिए 1 से 9 तक के अकं के एक
ही चिहन को बार-बार दोहराया जाता था। 10 और उसकी गुणन संख्या के लिए भिन्न भिन्न चिहन थे। उदाहरण के लिए 110,100 आदि के लिए अलग-अलग सकेत थे। 153 की संख्या लिखने के लिए 100 का चिहन एक बार 10 का चिहन 5 बार 1 का
चिहन 3 बार लिखा जाता था। इस प्रणाली में जोड़ और घटाने की क्रियाएँ सरल थी।
मिस्र के निवासी त्रिभुज और आयत का क्षेत्रफल निकाल सकते थे।
मिस्र वालों की सबसे बड़ी उपलब्धि सौर पंचाग थी। लगभग सभी प्राचीन जनगणों ने सुमेर वालों की तरह अपने पंचाग चद्र मासों के आधार पर बनाए थे। किन्तु यह उस कृषक जनगण के लिए सहायक नहीं है जिसे अपने कार्य के लिए पहले से ऋतुओं, वर्षा और बाद आने के समय की जानकारी आवश्यक होती है। अनेक वर्षों तक सावधानी पूर्वक देखने के बाद मिस्र वालों को मालूम हुआ कि एक बाढ़ और दूसरी बाढ के बीच औसतन 365 दिन होते है। उन्होंने यह भी पाया कि सिरियस नामक चमकीला तारा सबसे बाद में तब निकलता था, जब बाढ़ काहिरा पहुँच जाती थी, और ऐसा हर 365 दिन पर होता था।
इन दो स्वतंत्र प्रेक्षणों से मिस्र वाले इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वर्ष में 365 दिन होते है। इसके बाद वर्ष को 12 महीनों में और प्रत्येक महीनों को 30 दिनों में बाँटा गया। बचे हुए 5 दिनों को धार्मिक उत्सवों के लिए अलग रखा गया। मगर सौर वर्ष में दरअसल लगभग 365 1/4 दिन होते हैं काफी समय बीतने पर 365 दिन के वर्ष पर आधारित पचाग गलत साबित हुआ। शायद मिस्र निवासियों ने इसको महसूस कर लिया था परंतु तब तक उस देश की दीर्घकालीन परंपरा के कारण वह पचाग इतनी दृढता से व्यवहार में जम गया था कि उन्होंने उसे नहीं बदला। फिर भी मिस्र का सौर पचाग एक महान उपलब्धि था।
अपने मृत लोगों के शवों को औषधियो का लेप देकर सुरक्षित रखने की मिस निवासियों की प्रथा ने विज्ञान के विकास को प्रोत्साहित किया। इससे मानव शरीर के
दावे से सम्बंधित ज्ञान और शल्यक्रिया के कौशल में वृद्धि हुई।
लगभग 1000 ई.पू. तक मिस्र की उन्नति का काल समाप्त हो गया। फराओ सम्राटों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अफ्रीका के रेगिस्तान से आकर मिस्र पर आक्रमण करने वाली खानाबदोश जातियों और भूमध्य सागर में स्थित नई शक्तियों के विरुद्ध
युद्ध करने पड़े।

मिस्र के देवता शु

धर्म
मिस के निवासियों का विश्वास था कि प्रकृति की प्रत्येक लीला के पीछे कोई बड़ी शक्ति विद्यमान होती है मगर सूर्य उनका सबसे महत्त्वपूर्ण देवता था। वे इसे सब चीजों का स्त्रष्टा मानते थे और उसकी पूजा अनेक नामों से करते थे। मिस वालों के अन्य प्रसिद्ध देवता थे-परलोक का राजा, बाढ़ का देवता और चंद्र देवता। उनके कुछ स्थानीय देवता भी थे। कभी-कभी बाज, घडियाल, गीदड़ और गाय को इन देवताओं के प्रतीक के रूप में लिया जाता था। संभवत चिर अतीत में ये पशु-पक्षी विभिन्न कबीलों के टोटम रहे होगे। लगता है कि मिस्र में पुरोहितों का कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं था।
मिस्र वालों का मृत्यु के बाद जीवन में दृढ विश्वास था। उनका ख्याल था कि जीवित अवस्था में मनुष्य की एक देह और एक आत्मा होती है। लोगों का विश्वास था कि मरने के बाद शरीर नष्ट हो जाता है और आत्मा जीवित रहती है, किन्तु मिस्र वालों
की धारणा थी कि मरने के बाद भी शरीर और आत्मा दोनो जीवित रहते है। केवल मृत व्यक्तियों का जीवन जीवित मनुष्यों के जीवन से कुछ भिन्न होता है। इसलिए वे मृत व्यक्ति के शव की रक्षा बड़ी सावधानी से करते थे। शव को मसालों से पोतकर बढिया कपड़ों में लपेटा जाता था। इस प्रकार से सुरक्षित किए गए शवों को ममी कहा जाता है। ममी को एक लकड़ी के संदूक में रखा जाता था उसे चित्रों से सजाया जाता
था और पत्थरों के बाक्स में बन्द करके एक मकबरे में दफना दिया जाता था। मकबरे के अंदर वे सभी वस्तुए रखी जाती थी जो मृत व्यक्ति को पसंद थीं और जिनका वह जीवित अवस्था में प्रयोग करता था। जब राजाओ और रानियों को दफनाया जाता लो
शव रखने के लिए काफी मूल्यवान बाक्स और मकबरे बनाए जाते थे, मगर जब साधारण मनुष्यों को दफनाया जाता था तब वे दोनों वस्तुएँ साधारण होती थी। इन मकबरों में कपडे, भोजन, पेय पदार्थ बहुमूल्य फर्नीचर और आभूषण रखे जाते थे। पिरामिड महान
राजाओ के मकबरे थे।

ममी
पिरामिड

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